Thoughts and Circumstances: इंसान के दिमाग की तुलना एक बगीचे से की जा सकती है, जिसमें या तो समझदारी से बाग़वानी की जा सकती है या उसे स्वच्छंद खुला छोड़ दिया जाए। लेकिन चाहे अच्छी खेती की हो या उपेक्षित छोड़ दिया हो, अगर उसमें कोई उपयोगी बीज नहीं डाला तो एक अनुपयोगी खरपतवार-बीज उसमें गिर जाएगा और अपनी तरह की व्यर्थ खरपतवार का उत्पादन जारी रखेगा। यह अनिवार्य है और होकर रहेगा। It is the Rule of Thoughts and Circumstances.
जिस तरह एक माली अपनी ज़मीन पर खेती करता है, उसे जंगली घास से मुक्त रखता है, और आवश्यकतानुसार फूलों और फलों को उगाता है उसी प्रकार एक आदमी को अपने दिमागी बगीचे को सींचना चाहिए: दिमाग से सभी गलत, बेकार व अशुद्ध विचारों की निराई, छँटाई करके उन्हें निकाल बाहर करना चाहिए| और सही, उपयोगी और शुद्ध विचारों के फल-फूलों की खेती में प्रवीणता हासिल करनी चाहिए| इस प्रक्रिया का पालन करते हुए जल्द ही व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि वह स्वयं ही अपनी आत्मा-रूपी बगीचे का माली ही नहीं बल्कि मालिक भी है और अपने जीवन का दिशा निर्देशक भी वही है|
अपने भीतर विचार के नियम भी स्वयं प्रकट होते हैं
अपने भीतर विचार के नियम भी स्वयं प्रकट होते हैं और वह निरंतर बढ़ती मानसिक सटीकता के साथ यह स्पष्ट समझ पाता है कि किस प्रकार से विचार-बलों और मानसिक तत्वों की कार्यशैली उसके चरित्र, परिस्थितियों और नियति को आकार देने का काम करती है। विचार और चरित्र एक हैं और चूँकि चरित्र खुद को माहौल और बाहरी परिस्थिति के माध्यम से ही प्रकट कर सकता है इसीलिए किसी व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियाँ हमेशा उसके आंतरिक स्थिति के सामंजस्य में ही पाई जाएंगी।
इसका मतलब यह नहीं है कि किसी भी समय एक आदमी की परिस्थितियां उसके पूरे चरित्र का एक संकेत हैं, लेकिन यह कि वो परिस्थितियां इतनी गहराई से उसके भीतर किसी महत्वपूर्ण विचार-तत्व से ऐसे जुड़ी हुई हैं कि कुछ समय के लिए ही सही वे उसके विकास के लिए अपरिहार्य हैं।