जेम्स एलेन (James Allen) की प्रसिद्ध कृति “भाग्य पर महारत” (Mastery of Destiny) का स्वतंत्र हिंदी अनुवाद, अध्याय 5: संपूर्णता (Thoroughness)
महान वस्तुएं छोटी-छोटी चीजों के मेल से बनी हैं
संपूर्णता में छोटे-छोटे कामों को इस तरह करना शामिल है जैसे कि वे दुनिया की सबसे बड़ी चीजें हों। यह कि जीवन की छोटी-छोटी चीजें प्राथमिक महत्व की हैं, यह एक ऐसा सत्य है जिसे आम तौर पर समझा नहीं जाता है, और यह विचार कि छोटी चीजों को उपेक्षित किया जा सकता है, एक तरफ फेंक दिया जा सकता है, या भुला दिया जा सकता है, ये संपूर्णता की कमी के मूल में है जो बहुत आम है, जिसके परिणामस्वरूप कार्य अपूर्ण और जीवन दुखी होता है।
जब कोई यह समझता है कि संसार की और जीवन की महान वस्तुएं छोटी-छोटी चीजों के मेल से बनी हैं, और यह कि छोटी चीजों के इस एकत्रीकरण के बिना महान चीजें अस्तित्वहीन होंगी, तो वह उन चीजों पर ध्यान देना शुरू कर देता है जिन्हें वह पहले नगण्य के रूप में मानता था । इस प्रकार वह संपूर्णता का गुण प्राप्त कर लेता है, और उपयोगी और प्रभावशाली व्यक्ति बन जाता है। इस एक गुण का स्वामी होना न होना शांति और शक्ति के जीवन अथवा दुख और कमजोरी के जीवन का कारण हो सकता है।
प्रत्येक श्रमजीवी जानता है कि यह गुण कितना दुर्लभ है – ऐसे पुरुषों और महिलाओं को ढूंढना कितना मुश्किल है जो अपने काम में विचार और ऊर्जा लगाएंगे और इसे पूरी तरह और संतोषजनक ढंग से करेंगे। खराब कारीगरी बहुतायत में मिलते है, कौशल और उत्कृष्टता कुछ लोगों द्वारा ही हासिल की जाती है। विचारहीनता, असावधानी और आलस्य ऐसे सामान्य दोष हैं कि “सामाजिक सुधार” के बावजूद, बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। जो आज अपने काम में ढिलाई करते हैं उनके लिए एक दिन आएगा जब भारी आवश्यकता की घड़ी में काम माँगते फिरेंगे।
योग्यतम के जीवित रहने का नियम क्रूरता पर आधारित नहीं है, यह न्याय पर आधारित है: यह उस दिव्य समानता का एक पहलू है जो हर जगह व्याप्त है। पाप को “कई कोड़ों से पीटा गया है”; यदि ऐसा नहीं होता तो पुण्य का विकास कैसे होता? विचारहीन और आलसी, विचारशील और मेहनती से ऊपर नहीं हो सकते हैं, या समान रूप से खड़े नहीं हो सकते हैं। मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि उनके पिता ने अपने सभी बच्चों को निम्नलिखित सलाह दी थी:
“तुम्हारा भविष्य का काम चाहे जो भी हो, अभी अपने काम पर पूरा दिमाग लगाओ और उसे अच्छी तरह से करो; तब तुम्हें अपने कल्याण के बारे में कोई डर नहीं रहेगा, क्योंकि बहुत से लोग हैं जो लापरवाह हैं तो ऐसे में कर्मठ मनुष्य की सेवाएं हमेशा मांग में रहती हैं।”
संपूर्णता की इस सामान्य कमी का कारण तलाशना दूर नहीं है; यह मज़े की उस प्यास में निहित है जो न केवल नियमित श्रम के लिए अरुचि पैदा करती है, बल्कि व्यक्ति को सबसे अच्छा काम करने और अपने कर्तव्य को ठीक से पूरा करने में असमर्थ बनाती है। कुछ समय पहले एक मामला मेरे संज्ञान में आया (ऐसे कई में से एक), एक गरीब महिला का, जिसे उसकी गंभीर अपील पर, एक जिम्मेदार और आकर्षक पद दिया गया था। उसे अपने पद पर केवल कुछ ही दिन हुए थे कि उसने “आनंद यात्राओं ” ( Pleasure Trips ) के बारे में बात करना शुरू किया था कि अब वह उस जगह पर आ गई थी तो खूब मज़ा लेगी। उसे लापरवाही और अक्षमता के लिए एक महीने के अंत में छुट्टी दे दी गई थी। जिस प्रकार दो वस्तुएँ एक ही समय में एक ही स्थान पर कब्जा नहीं कर सकतीं, उसी प्रकार आनंद में लीन मन भी एकाग्र नहीं हो सकता।
कर्तव्य का उत्तम प्रदर्शन
आनंद का अपना स्थान और समय होता है लेकिन उसके विचार को उन घंटों के दौरान मन में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए जो कर्तव्य के प्रति समर्पित होने चाहिए। जो लोग अपने सांसारिक कार्यों में लगे रहते हुए लगातार सुखों की कल्पना में लगे रहते हैं वे अपने काम में उलझने पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हैं, यहाँ तक कि अगर उनकी खुशी दांव पर लगती है तो वे कर्तव्य को नजरंदाज भी कर सकते हैं।
पूर्णता उत्तमता है, श्रेष्ठता है, इसका अर्थ है किसी कार्य को इतनी अच्छी तरह से करना कि करने के लिए कुछ भी शेष न रहे; इसका मतलब है कि अपना काम करना, अगर किसी से बेहतर नहीं तो कम से कम उनसे भी बुरा भी नहीं हो। इसका अर्थ है विचारशीलता का अभ्यास, महान ऊर्जा को आगे बढ़ाना, अपने कार्य के लिए मन का लगातार उपयोग, धैर्य, दृढ़ता और कर्तव्य की उच्च भावना विकास करना। एक प्राचीन शिक्षक ने कहा, “अगर कुछ करना है, तो उस पर जोर से हमला कर दो”; और दूसरे शिक्षक ने कहा, “जो कुछ काम तेरे हाथ आए , उसे अपनी सम्पूर्ण शक्ति से करना।”
जो अपने सांसारिक कर्तव्यों में पूर्णता की कमी रखता है, उसे आध्यात्मिक चीजों में भी समान गुण की कमी होगी। वह अपने चरित्र में सुधार नहीं करेगा; अपने धर्म में दुर्बल और अनमना होगा, और किसी भी अच्छे और उपयोगी उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा। जो मनुष्य एक दृष्टि सांसारिक सुख पर और दूसरी धर्म पर रखता है, और जो सोचता है कि उसे दोनों स्थितियों का लाभ मिल सकता है, वह न तो अपने सुख की खोज में और न ही अपने धर्म में पूर्ण होगा बल्कि दोनों का बुरा हाल ही करेगा। आधे-अधूरे धर्मी होने से तो तन-मन से संसारी होना अच्छा है; पूरे मन को एक नीची चीज में लगाना उच्चतर चीज में आधा मन लगाने से कई गुना बेहतर है।
समग्रता में होना बेहतर है, भले ही वह बुरी या स्वार्थी दिशा में हो, न कि अकुशल और नकचढ़ा होकर अच्छी दिशाओं में जाना, क्योंकि संपूर्णता चरित्र के विकास और ज्ञान के अधिग्रहण की ओर तेज़ी से ले जाती है; यह प्रगति और प्रकटीकरण को गति देता है। यह बुरे को कुछ बेहतर की ओर ले जाता है, और अच्छाई को उपयोगिता और शक्ति की बड़ी ऊंचाइयों पर ले जाता है।
अध्याय 5: समाप्त
Featured Photo by Rao TS Copyright Ⓒ2021 Rao TS– All Rights ReservedFollow Rao TS