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उपलब्धि में सही सोच का महत्व

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जेम्स एलेन (James Allen) अपनी प्रसिद्ध कृति “जैसा कि एक व्यक्ति सोचता है” (As A Man Thinketh) में कहते हैं: Importance of Thoughts in Achievement : एक व्यक्ति जो हासिल करता है अथवा वह सब जो वह हासिल करने में विफल रहता है वह उसके अपने विचारों का प्रत्यक्ष परिणाम है। एक उचित रूप से व्यवस्थित ब्रह्मांड में, जहां संतुलन खोने का मतलब होगा संपूर्ण विनाश, वहाँ व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी बिल्कुल पक्की होनी चाहिए।  

उपलब्धि अपने विचारों का प्रत्यक्ष परिणाम है  Importance of Thoughts in Achievement

एक व्यक्ति की कमज़ोरी और ताकत, पवित्रता और अशुद्धता उसके अपने हैं; दूसरे आदमी के नहीं। वो सब खुद ने हासिल किया है दूसरे के द्वारा नहीं लाया गया है। तथा उन्हे वह स्वयं ही बदल सकता है न कि कोई दूसरा। उसकी हालत भी अपनी है, किसी अन्य व्यक्ति की नहीं। उसका दु:ख और खुशी उसके अंदर से ही विकसित होती है। जैसा वह सोचता है, वैसे ही वह है, और जैसा वह सोचता रहता है, वैसे ही वह रहेगा भी।
एक मजबूत व्यक्ति किसी कमजोर की तब तक मदद नहीं कर सकता जब तक कि कमजोर उस हेतु राज़ी न हो। फिर भी कमजोर आदमी को खुद को मजबूत बनाना चाहिए। और उसे अपने प्रयासों से, उस शक्ति का विकास करना चाहिए जिसकी वह दूसरे में प्रशंसा करता है। कोई अन्य नहीं बल्कि वह खुद अपनी हालत में बदलाव ला सकता है।

दमनकारी और दास परस्पर सहयोगी  हैं

लोगों के लिए यह सोचना और कहना सामान्य हो गया है: ” कई पुरुष ग़ुलाम होते हैं क्योंकि एक अत्याचारी है; हमें उत्पीड़न करने वाले से नफरत है।“ हालांकि अब इस निर्णय को उल्टा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। और वे कह रहे हैं कि, “एक आदमी अत्याचारी है क्योंकि बहुत से लोग ग़ुलाम हैं, हमें दासों का तिरस्कार करना चाहिए।“

सच्चाई यह है कि दमनकारी और दास अनजाने में ही आपस में सह-संचालक हैं। ऊपरी तौर से ऐसा दिखता है कि एक व्यक्ति दूसरे को पीड़ित कर रहा है लेकिन वास्तव में वह स्वयं से पीड़ित हैं। सच्चे ज्ञान की मदद से हम पीड़ित में दुर्बलता और उत्पीड़क के शक्ति के दुरुपयोग में कर्म के नियम को अनुभव कर पाते हैं।

एक परिपूर्ण प्रेम, दोनों के भीतर के दुख को देखकर, किसी की निंदा नही करता है बल्कि पूर्ण दया-भाव से उत्पीड़ित और उत्पीड़क दोनों को समान रुप से गले लगाता है। वे लोग जो कमज़ोरी पर विजय पा चुके हैं और सभी स्वार्थी विचारों को दूर हटा चुके हैं, वे न तो उत्पीड़क हैं और न ही उत्पीड़ित—वे स्वतंत्र हैं। Importance of Thoughts in Achievement.

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