जेम्स एलेन (James Allen) अपनी प्रसिद्ध कृति “जैसा कि एक व्यक्ति सोचता है” (As A Man Thinketh) में कहते हैं:
Dishonest Man and Honest Man: परिस्थितियां इतनी जटिल हैं, सोच इतनी गहरी निहित है और खुशी की स्थिति अलग-अलग व्यक्तियों में बहुत हद तक भिन्न-भिन्न होती है। इसीलिए एक व्यक्ति की पूरी आत्म-स्थिति बाहरी पहलू से देखकर किसी दूसरे द्वारा तय (Judge) नहीं की जा सकती है| एक व्यक्ति किसी न किसी रुप से ईमानदार हो सकता है लेकिन वह अभावों से पीड़ित हैं उधर एक आदमी कुछ दॄष्टि में बेईमान हो सकता है लेकिन वह धन अर्जित कर लेता है। Is a Dishonest Man Completely Corrupt and Honest Man Fully Virtuous?
तो आम तौर पर यह निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि एक मनुष्य अपनी ईमानदारी विशेष के कारण असफल होता है और दूसरा अपनी बेईमानी विशेष के कारण धनी बन जाता | यह एक सतही निर्णय है जिसके अनुसार बेईमान आदमी लगभग पूरी तरह से भ्रष्ट है और ईमानदार आदमी लगभग पूरी तरह से गुणी है।
गहन ज्ञान और व्यापक अनुभव के प्रकाश में इस तरह का निर्णय गलत पाया जाता है। बेईमान आदमी के पास कुछ सराहनीय गुण हो सकते हैं जो दूसरे के पास नहीं हैं। वहीं ईमानदार आदमी के पास ऐसे घृणित गुण जो दूसरे में अनुपस्थिति हैं। ईमानदार आदमी अपने ईमानदार विचारों और कृत्यों के अच्छे परिणामों को पाता है; वह उन कष्टों को भी झेलता है जो उसकी बुराई से उपजते हैं। बेईमान आदमी भी इसी प्रकार अपने दुख और सुख को पा लेता है।
मानव अहंकार यह मानकर बड़ा प्रसन्न होता है कि कोई यदि पीड़ित है तो उसका कारण उसके पुण्य हैं। लेकिन इंसान तब तक ऐसा घोषित करने की स्थिति में नही हो सकता है जब तक वह सारे कड़वे और अशुद्ध विचार अपने मन से निकाल कर बाहर नही फेंक देता और अपनी आत्मा पर लगे हर दाग को धौ नही डालता। तब कहीं जाकर वह सत्य को जान पाएगा और घोषणा कर सकेगा।