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युद्ध की कला 6: कमजोर और मजबूत बिंदु

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सैन्य रणनीतिकार सून त्ज़ु नेअध्याय 6 में कहा है: जो सेना मैदान में पहले आएगी और दुश्मन के आने का इंतजार करेगी, वह लड़ाई के लिए ताजातरीन और ऊर्जावान होगी  और जो भी रण क्षेत्र में हड़बड़ी करते हुए  बाद में आएगा वह थका हुआ होगा। इसलिए चतुर लड़ाका अपनी इच्छा शत्रु पर थोपता है लेकिन शत्रु की इच्छा को स्वयं पर थोपने नहीं देता।  अपनी स्थिति का फायदा उठाकर वह दुश्मन को अपने स्वयं के हिसाब से प्रभावित कर सकता है या उसे क्षति पहुंचाकर वह दुश्मन को अपने पास आना असंभव बना सकता है।

अपनी इच्छा शत्रु पर थोपना

यदि शत्रु आराम से काम ले रहा है, तो वह उसे परेशान कर सकता है; यदि रसद की उसे अच्छी तरह से आपूर्ति हो रही है तो वह उसे भूख से मार सकता है; अगर दुश्मन चुपचाप अपने खेमे में बैठा हुआ है तो वह उसे बाहर निकालने को करने के लिए मजबूर कर सकता है।  उन स्थानों पर प्रकट होना चाहिए जिसे बचाने दुश्मन बचाने हेतु दौड़ा चला आए और  उन जगहों पर तेजी से आगे बढ़ें जिनकी दुश्मन को आपको उम्मीद नहीं हो । कोई सेना बिना संकट के बड़ी दूरी तय कर सकती है अगर वह उस देश से गुजरती है जहां दुश्मन नहीं है।

दुश्मन के भाग्य को जकड़ कर रखना

इसलिए वही सेनापति हमले में निपुण है जिसके विरोधी को पता नहीं कि किसका बचाव करना है; और वही सेनापति रक्षा में निपुण है जिसके विरोधी को पता नहीं है कि उसे किस पर हमला करना है। हे सूक्ष्मता और गोपनीयता की दिव्य कला! तुम्हारे माध्यम से हम अदृश्य होना सीखते हैं, तुम्हारे द्वारा अश्रव्य होना और इसलिए  दुश्मन के भाग्य को हम अपने हाथों में जकड़ सकते हैं। अगर आप दुश्मन की कमजोरी जानते है तो बिना किसी प्रतिरोध के आप आगे बढ़ सकते हैं वहीं  अगर आपकी चाल अधिक तेज है तो आप पीछे हट सकते हैं और दुश्मन के पीछा करने से भी सुरक्षित बच सकते हैं।

यदि हम युद्ध करना चाहते हैं तो दुश्मन एक उच्च प्राचीर और एक गहरी खाई के पीछे आश्रय लिए हुए हो तो भी उसे मजबूर किया जा सकता है। हमें बस इतना करना चाहिए कि किसी ऐसी जगह पर हमला करें जिसे वह छोड़ने देने के लिए बाध्य हो जाए। यदि हम युद्ध नहीं करना चाहते हैं तो हम दुश्मन को हमें उलझने से रोक सकते हैं, भले ही वह हमारे खेमे के रास्तों का पता कर ले। बस हमें उसके रास्ते में कुछ अजीब और अकारण फेंकने की ज़रूरत है।

शत्रु के स्वभाव को पहचान कर और स्वयं अदृश्य रहकर, हम अपनी शक्तियों को एकाग्र रख सकते हैं जबकि शत्रु को विभाजित कर देना चाहिए।  हम एक संयुक्त मोर्चा बना सकते हैं, जबकि दुश्मन को टुकड़ों में विभाजित करना देना चाहिए। इस प्रकार एक पूरे मोर्चे से  उनके मोर्चे के टुकड़े टुकड़े भिड़ेंगे इसका अर्थ है कि हम दुश्मन के कुछ के मुकाबले कई होंगे। और अगर हम इस प्रकार एक श्रेष्ठ बल के साथ एक हीन बल पर हमला करने में सक्षम हैं तो हमारे विरोधी भयंकर संकट में होंगे।

लड़ने का स्थान अज्ञात रखा जाना चाहिए

जिस स्थान पर हम लड़ने का इरादा रखते हैं, उसे ज्ञात नहीं किया जाना चाहिए; तब दुश्मन को कई अलग-अलग बिंदुओं पर संभावित हमले के खिलाफ तैयार होना होगा; और उसकी सेनाओं को कई दिशाओं में वितरित किया जाएगा, इस प्रकार हमें  किसी भी बिंदु पर कम संख्या बल का सामना करना पड़े तो फ़ायदा होगा।

क्योंकि यदि दुश्मन अपने अग्रभाग को मजबूत करेगा तो  उसका पृष्ठ भाग कमजोर हो जाएगा; यदि वह अपने पृष्ठ भाग को मजबूत करेगा तो उसका अग्रभाग कमजोर हो जाएगा; यदि वह अपने बाएँ को मज़बूत करेगा, वह अपने दाएँ को कमज़ोर करेगा; यदि वह अपने दाएँ भाग को मजबूत करेगा तो उसका बांया भाग कमजोर होगा यदि वह हर जगह अतिरिक्त सैन्य बल भेजता है तो वह हर जगह कमजोर होगा।

संख्यात्मक कमजोरी संभावित हमलों के खिलाफ तैयारी करने से आती है; संख्यात्मक शक्ति हमारे विरोधी को हमारे खिलाफ इन तैयारियों को करने के लिए मजबूर करने से। आने वाली लड़ाई का स्थान और समय जानने के बाद, हम लड़ने के लिए बड़ी दूरी से भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। लेकिन अगर न तो समय और न ही जगह का पता चलता है, तो सेना के बाएं भाग को दाहिना भाग मदद नहीं पहुंचा पाएगा ओर इसी प्रकार की बात दाएँ या आगे- पीछे वाले भागों पर भी सामान रूप से लागू होती है –वे एक दूसरे को राहत नहीं पहुंचा पाएंगे। विशेषकर तब जबकि सेना के सबसे दूर के हिस्से की दूरी सौ मील से कम नहीं हैं, और यहां तक ​​कि निकटतम भी अनेक मीलों दूर हैंI

यदि शत्रु के सैनिक हमारी संख्या से अधिक हैं, फिर भी इससे उन्हें विजय के मामले में कुछ भी लाभ नहीं होगा–तब भी जीत हासिल की जा सकती है।  दुश्मन संख्या में अधिक मजबूत है फिर भी हम उसे लड़ने से रोक सकते हैं। तरीका यह है कि उसकी योजनाओं और उनकी सफलता की संभावना की खोज करना। उसे उकसाएं और उसकी गतिविधि या निष्क्रियता के सिद्धांत को जानें। उसे खुद को प्रकट करने के लिए मजबूर करें ताकि उसके कमजोर स्थानों का पता लगाया जा सके। विरोधी सेना की अपने आप से सावधानीपूर्वक तुलना करें, ताकि आपको पता चल सके कि ताकत कहाँ प्रचुर मात्रा में और कहाँ न्यून है।

मजबूत से बचो और कमजोर पर वार करो

सामरिक योजनाएं बनाने वक्त , आपको उन्हें चतुराई से छिपाना है; अपनी रणनीति को छिपाएंगे तो आप शातिर दिमागों और जासूसों की भेदी निगाहों से सुरक्षित रहेंगे। दुश्मन की अपनी रणनीति से अपने लिए कैसे जीत को हासिल किया जा सकता है – यही वह तरकीब है जो आम भीड़ को समझ में नहीं आ सकती है।  सभी लोग वह तरकीब तो देख सकते हैं जिससे  हम जीतते हैं  लेकिन कोई भी नहीं यह नहीं देख सकता है किस रणनीति से जीत हासिल हुई है।  उन रणनीतियों को न दोहराएं जिनसे आपने जीत हासिल की है, लेकिन अपने तरीकों को अनंत प्रकार की परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित करें।

सैन्य दाँव-पेच  पानी की तरह है; क्योंकि पानी अपने प्राकृतिक प्रवाह में उच्च स्थानों से नीचे की ओर बहता है।  तो युद्ध में तरीका यह है कि जो मजबूत है उससे बचो और जो कमजोर है उस पर वार करो।  पानी जमीन की प्रकृति के अनुसार अपने प्रवाह को आकार देता है; सैनिक भी जिस दुश्मन का सामना कर रहा है उसी के हिसाब से अपनी जीत का तरीका निकालता है।

पांच तत्व (जल, अग्नि, लकड़ी, धातु, पृथ्वी) हमेशा समान रूप से प्रबल नहीं होते हैं; चार ऋतुएँ एक एक को बारी बारी से रास्ता देती हैं। दिन कभी छोटे और कभी लंबे होते हैं; चंद्रमा की भी चढ़ने और ढलने की एक अवधि होती है। इसलिए, जैसे पानी निरंतर एक ही आकार में नहीं रहता है वैसे ही युद्ध में भी कोई स्थिर स्थिति नहीं होती है।  वह जो अपने प्रतिद्वंद्वी को तौल माप कर अपनी रणनीति को संशोधित कर सकता है वही जीतने में सफल होता है उसे स्वर्ग में जन्मा  हुआ  कप्तान कहा जा सकता है।

अध्याय 6: समाप्त 

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