अपने जीवन काल में सभी इंसान आत्म-प्राप्ति के लिए सक्षम होते हैं, जिसे अन्य शब्दों में आत्म-वास्तविकता, जागृति, सम्पूर्ण ज्ञान, मोक्ष, निर्वाण और साल्वेशन इत्यादि कहा जाता है। हालांकि उनमें से बहुत कम लोग इसे प्राप्त करते हैं। उनमें से बाकी तो सिर्फ जानवरों की तरह रहते हैं, व्यवहार करते हैं, एवं वैसी ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
हम जानवरों से ही विकसित हुए माने जाते हैं, उदाहरण के लिए, चिम्पांजी जो हमारे निकटतम अनुवांशिक रिश्तेदार हैं, उनके और हमारे डी.एन.ए. में लगभग 99% समानता है अत:एव मनुष्य और पशु के बीच अंतर सिर्फ विकास की मात्रा में है |यानि दोनों प्रजातियों के बीच कोई मौलिक अंतर नहीं है; केवल यह कि मनुष्य अब उच्च स्तर तक विकसित हो गए हैं।
पशु बनाम मनुष्य और आत्म-प्राप्ति क्या है?
आत्म-प्राप्ति के बारे में बात करें तो सवाल उठता है कि जानवरों और हम मनुष्यों में क्या अंतर है? मूल्यांकन, तर्क और भाषा की क्षमता? वैज्ञानिक रूप से, हाँ। अनिवार्य रूप से, हमें स्वयं को प्रतिबिंबित करने की क्षमता है लेकिन कोई चिम्पांजी ऐसा नहीं कर सकता है। मनुष्य अपने शरीर, मन और आत्मा (आत्म या रूह) को अलग-अलग मान सकते हैं जबकि जानवरों में ऐसी कोई क्षमता नहीं है इसलिए उनके लिए आत्म-प्राप्ति जैसी कोई घटना नहीं होती है।
जबकि प्रत्येक इंसान कुछ अद्वितीय प्राप्त करने में सक्षम होता है जो केवल आत्म-प्राप्ति की शक्ति द्वारा किया जा सकता है, दूसरे शब्दों में, अंतर्ज्ञान की भावना से। यह आत्म-प्रतिबिंब का साधन ही है जो हमें अंतर्ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है जो कि वास्तव में, हमारे सच्चे आत्म, रूह, या आत्मा की एक झलक है।
उसकी प्राप्ति कैसे हो?
जैसा कि लेख में पहले कहा गया था कि हम अपने शरीर, मन और आत्मा को अलग-अलग इकाइयों के रूप में देख सकते हैं। यहीं तो छल है! जिस पल में आप स्वयं को प्रतिबिंबित करते हैं और अपने मन, जो कि विचारों का बवंडर है,को आत्म से अलग कर लेते है उसी समय मन जल्द ही शांत बैठ जाता है| तूफानी विचारों का भंवर एक दम से रुक जाता है। यही वह समय है जब आपको अपने सच्चे आत्म की झलक मिलती है–वह प्रकाश जो आपके आत्म-प्राप्ति के मार्ग को दर्शाता है।
सम्पूर्ण आत्म-ज्ञान–अंतिम गंतव्य
हो सकता है कि आप इस शानदार क्षण को हमेशा के लिए न रखें पाएं, हालांकि अनेक साधकों और तपस्वियों ने यह किया है| लेकिन आप अपनी दिनचर्या के बीच कुछ मिनटों का अभ्यास करके आप भी इसे पकड़ सकते हैं। इस प्रकार हम रोज़ाना आत्म-प्राप्ति का अनुभव कर सकते हैं जब तक कि हम इसे हमेशा के लिए पकड़ने हेतु स्वयं को निपुण न करें लें| यदि आप सफल हुए तो यही जागृति, प्रबुद्धता, “सत चित आनंद” (पूर्ण / सत्य, चेतना व आनंद) या निर्वाण होगा जो कि मनुष्य का अंतिम गंतव्य है|
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